यूपी के बुन्देलखण्ड कि चारों सीटें बचाना भाजपा के लिये मुश्किल

बुंदेलखंड का उत्तर प्रदेश वाला हिस्सा आम चुनावों में महत्वपूर्ण होगा क्योंकि यहां चार सीटें हैं, जिन पर मुकाबला दिलचस्प हो सकता है. बांदा, हमीरपुर, जालौन और झांसी, ये चार सीटें भाजपा का किला बन चुकी हैं लेकिन इस बार क्या होने वाला है?पिछले आम चुनाव यानी 2014 में ये चारों सीटें भाजपा के खाते में गई थीं. वह भी 44.86 फीसदी वोटों के साथ. यूपी के बाकी हिस्सों में भाजपा की जीती कुछ सीटों पर पिछले विधानसभा चुनावों में तो समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने सेंध लगाई लेकिन इन चार सीटों पर ऐसा नहीं हो सका.2017 में हुए विधानसभा चुनावों में भी भाजपा ने बुंदेलखंड में दबदबा बनाए रखा और इस इलाके की सभी 20 सीटें जीतीं. 2014 के आम चुनावों की तुलना में वोट प्रतिशत में कुछ इज़ाफा हुआ. 2017 के विधानसभा चुनावों में जहां भाजपा का वोट प्रतिशत 45.01 रहा, वहीं बसपा का 22.47 और सपा व कांग्रेस ने साथ में चुनाव लड़कर 24.32 वोट प्रतिशत हासिल किया.बीते चुनावों के आंकड़े और बुंदेलखंड के यूपी वाले हिस्से का छोटा भौगोलिक इलाका ध्यान में रखा जाए तो यहां एक बार फिर एकतरफा चुनाव होने की स्थिति बन सकती है. वैसे भी, बुंदेलखंड में 2014 चुनावों में भाजपा का इस तरह जीतना ताज्जुब की बात नहीं थी क्योंकि 1991 और 1998 के आम चुनावों में भी पार्टी को भारी जीत हासिल हुई थी.

देखा जाए तो 90 के पूरे दशक में, बुंदेलखंड में भाजपा का वर्चस्व कायम रहा. राम जन्मभूमि आंदोलन के समय में बने राजनीतिक माहौल के बीच हुए 1991 के आम चुनाव में भाजपा ने बुंदेलखंड की चारों सीटों पर कब्ज़ा किया था. इसके बाद 1996 में सिर्फ बांदा सीट बसपा के खाते में गई और भाजपा ने यहां बाकी तीन सीटें जीतीं और 1998 में फिर चारों सीटें जीतकर अपना वर्चस्व कायम किया.हालांकि, इसके बाद भाजपा को इस अंचल में एक अरसे के लिए नाकामी हाथ लगी. 1999 से 15 साल के इंतज़ार के बाद मोदी की लहर में 2014 में फिर भाजपा यहां जीत सकी. इंतज़ार के इस अंतराल में भाजपा के हाथ 2004 आम चुनावों में जालौन सीट लगी जबकि, सपा ने बाकी तीन सीटें जीतीं. बसपा ने 1999 में यहां तीन सीटें जीती थीं. 1984 में आखिरी बार यूपी के बुंदेलखंड की चारों सीट जीतने के बाद 1999 और 2009 के चुनावों में कांग्रेस के हाथ झांसी सीट लगी थी.

चुनाव में जातीय समीकरण की बात करें तो बुंदेलखंड में मुस्लिमों की आबादी कम है,  इसलिए उत्तर प्रदेश के बाकी हिस्सों की तुलना में यहां इस समुदाय के वोट अहम नहीं हैं. दूसरी ओर, यहां पूरा फोकस अनुसूचित जाति पर रहता है, जो यहां की कुल आबादी का एक चौथाई हिस्सा है. ये वो वोट बैंक है, जिसे सपा और बसपा का गठबंधन भुनाने की कोशिश कर रहा  है. दोनों पार्टियों के बीच हुए समझौते के बाद दोनों दो दो सीट पर चुनाव लड़ रहे हैं । सपा के उम्मीदवार बांदा और झांसी जबकि, बसपा के उम्मीदवार जालौन और हमीरपुर से चुनाव मैदान में हैं । इसके अलावा, बांदा और हमीरपुर में ब्राह्मणों के वोट अहम हैं और साथ ही, इन इलाकों में लोधी समुदाय की भी खासी संख्या है. वहीं, बांदा और झांसी में कुर्मी और कुशवाहा समूहों के वोट खास महत्व के हो सकते हैं. झांसी में जहां राजपूतों का भी रसूख है, वहीं यादवों का भी. जालौन में भी यादवों के वोट निर्णायक साबित हो सकते हैं.आम चुनावों में अगर जातीय समीकरणों ने बड़ी भूमिका अदा की, तो यहां उलटफेर से इनकार नहीं किया जा सकता.वोटों का गणितअगर शुद्ध वोट गणित देखा जाए तो, क्या सपा-बसपा गठबंधन यहां कोई फर्क पैदा कर सकेगा?

अगर सपा और बसपा के वोटों का जोड़ देखा जाए, तो बांदा और झांसी में 2014 के चुनावों में यह भाजपा के वोटों से ज़्यादा बैठता है. वहीं, हमीरपुर और जालौन में भाजपा के वोट सपा बसपा के कुल वोटों से ज़्यादा रहे थे. लेकिन, 2019 में गठबंधन के बाद बने माहौल में कहा नहीं जा सकता कि नतीजा क्या होगा लेकिन, वोटों की पूरी तब्दीली की संभावना से इनकार भी नहीं किया जा सकता.इसी दौरान यहां चुनाव इन मायनों में भी दिलचस्प होगा कि क्या कांग्रेस यहां कोई प्रभाव पैदा करने में कामयाब होगी या हाल में हुए मध्य प्रदेश चुनावों की सफलता के बावजूद उसे इसका कोई फायदा यहां नहीं होगा 

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