जनजाति नहीं तो वोट नहीं ! वनाधिकार नहीं तो वोट नहीं !


उत्तर प्रदेश के कोल आदिवासी समाज का 2019 चुनाव बहिष्कार


उत्तर प्रदेश में आदिवासी कोल समाज को आजादी के 72 वर्ष बाद भी जनजाति (ST) का दर्जा आज तक ना दिए जाने एवं 13 फरवरी 2019 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित आदेश के तहत आदिवासियों एवं स्थानीय निवासियों को वन क्षेत्र एवं पहाड़ों से बेदखल करके उन्हें वनाधिकार से वंचित किए जाने की कार्यवाही से क्षुब्ध होकर उत्तर प्रदेश के कोल आदिवासी समाज ने लोकसभा चुनाव 2019 के बहिष्कार का निर्णय लिया है !

 उल्लेखनीय है कि आजादी के बाद ही आदिवासी कोल समाज को देश के सभी राज्यों में जनजाति की सूची में रखा गया लेकिन उत्तर प्रदेश में कोल आदिवासी समुदाय को अनुसूचित जाति (SC) की सूची में डालकर आदिवासी कोल समाज के मूल स्वरूप को बदलकर सामाजिक, सांस्कृतिक पहचान को खत्म करने का प्रयास सभी स्थापित राजनीतिक दलों द्वारा किया गया है जबकि सन 1980 में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा आदिवासी दशक मनाने की घोषणा की गई जिसमें संयुक्त राष्ट्रसंघ सहित तत्कालीन भारत सरकार ने कोल आदिवासी समाज को जो कि अंग्रेजों के शासन काल में विंध्य का यह क्षेत्र आदिवासी बाहुल्य 1874 में द शेड्यूल्ड डिस्ट्रिक्ट एक्ट में शामिल था एवं 1908 में छोटा नागपुर टेनेंसी / संथाल परगना एक्ट (CNT/SPT ACT - 1908) के अंतर्गत उत्तर प्रदेश का यह विंध्य क्षेत्र (चंदौली का चकिया, रावर्ट्सगंज, मिर्जापुर इलाहाबाद का यमुना पार क्षेत्र, चित्रकूट का बांदा कर्वी मानिकपुर क्षेत्र सम्मिलित था) आता था ! उसी आधार पर 10 साल के लिए उत्तर प्रदेश में उस समय की सरकार ने 13  अनुसूचित जातियों को जो आदिवासी जनजाति थे जनजाति की सूची में रखने का शासनादेश पत्र 2096 / 26/3/ 80 – 4/5/80  में आदेश किया जिसमें कोल समाज घोषित जनजाति सूची में पहले नंबर पर दर्ज था ! परंतु पुन: राजनीतिक षड्यंत्र द्वारा इन 13  जातियों को अनुसूचित जाति की सूची में शामिल कर दिया गया ! जनजाति का दर्जा हासिल करने के लिये आदिवासी कोल समाज द्वारा लंबी कानूनी और राजनीतिक लड़ाइयां लड़ने के बाद 2002  में पुन: उपरोक्त 13  जातियों में से तत्कालीन भाजपा सरकार ने 10 जातियों को तो जनजाति का दर्जा दे दिया लेकिन राजनीतिक षड्यंत्र के तहत उत्तर प्रदेश की सबसे बड़ी आदिवासी जाति  कोल-मुसहर-धांगर को जनजाति की सूची से बाहर कर दिया जिससे आदिवासी कोल समाज की अपूर्णीय क्षति हुई ! 


  1. जनजाति आरक्षण लाभ के अंतर्गत i)- शिक्षा, ii)- नौकरी, iii)- ग्राम पंचायत से लेकर लोकसभा तक मिलने वाला राजनीतिक आरक्षण जनजाति न होने से बाधित रहा ! परिणाम स्वरूप आदिवासी कोल समाज के बच्चों का बचपन, युवाओं का भविष्य, और आदिवासी कोल समाज राजनैतिक पिछड़ेपन का शिकार हुआ ! इस प्रकार शिक्षा, रोजगार और सामाजिक/राजनीतिक प्रतिष्ठा से वंचित आदिवासी कोल समाज उत्तर प्रदेश में सबसे निचले पायदान पर पहुंच गया है !

  2. जनजाति न होने के कारण दूसरे प्रदेश में निवास करने वाला कोल आदिवासी जनजातीय समाज उत्तर प्रदेश के कोल आदिवासी समाज में शादी-सम्बंध करने में परहेज करने लगे हैं जिससे हमारी सामाजिक और सांस्कृतिक पहचान समाप्त हो रही है !


आदिवासी भाई बहनों, कोल आदिवासी समाज इस देश का आदिम निवासी होते हुए भी आज जिसे संयुक्त राष्ट्रसंघ भी आदिवासी मानता है लेकिन हमारे आदिवासी कोल समाज की राजनीतिक जागरुकता न होने के कारण देश-प्रदेश में राज करने वाले राजनैतिक दलों ने राजनीतिक षड्यंत्र के तहत हमें संविधान में मिले जनजाति अधिकार (ST), वनाधिकार कानून जैसे मौलिक और संवैधानिक अधिकारों से दूर किया गया ! जिसमें सभी राजनैतिक दलों की आंतरिक सांठगांठ रही है ! हमें आजादी के बाद से आज 62 सालों तक (10 वर्ष 80 के दशक को छोड़ कर जो संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा दिया गया था) हमें हमारे अधिकारों से वंचित रखा गया ! और निकट भविष्य में भी कोई आशा की किरण नहीं दिख रही है ! 2019 के लोकसभा चुनाव में किसी भी राजनीतिक दल ने आदिवासी कोल समाज को जनजाति अधिकार देने की बात नहीं किया ! अभी 13 फरवरी 2019 को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत देश के आदिवासियों को जंगल-पहाड़ों से बेदखल करने का जो फरमान निकला है उस पर भी कोई राजनीतिक दल बात नहीं कर रहे हैं ! इन सभी परिस्थितियों में आदिवासी कोल समाज के पास चुनाव बहिष्कार करने के अतिरिक्त दूसरा कोई विकल्प नहीं बचा है ! इस चुनाव बहिष्कार का एकमात्र उद्देश्य शासन-प्रशासन को आदिवासी कोल समाज की समस्या से अवगत कराना है और इस निर्णय के लिए स्थापित सभी राजनीतिक दल जिम्मेदार हैं जिन्होंने आदिवासी कोल समाज को उत्तर प्रदेश में जनजाति अधिकार (ST) से वंचित रखा ! 


 


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